क्या बात है जो इतने मायूस रहने लगे हो।
ज़िंदगी के मोड़ से डरना कैसा,
जब ठान लिया तो मुड़के देखना कैसा।
सफ़र में हो तो ये वक़्त भी गुज़र जाएगा,
याद रखना, रात कितनी भी लंबी हो, आखिर गुजर जाएगा ।
ना जाने किस बात पर इतना इतराते हो तुम,
किससे ऊँचा और किसको नीचा मानते हो तुम?
कभी ठहर के ये तो सोच,
कौन है वो और कौन हो तुम?
खुद को खुद से छलते क्यों हो तुम?
सत्य क्या है, और क्या मानते हो तुम?
अब भी कहता हूँ, खुद को जान
यहाँ दूसरा कोई नहीं, सिवाय तुम।
आज खबर लिखने के भी पैसे मिलते हैं और ना लिखने के भी। हकीकत का हर एक लफ्ज़ दफन है किसी कोने में,
और झूठ किसी महफिल की शान है।
जाति की उलझनों में उलझा है ये समाज,
किसको इस बात की खबर कि वो कितना खोखला हो चुका है।
गर कभी इस समाज को होश आए तो मैं बताऊं कि
कल किसी गरीब से उसकी रोटी छीन ली गई,
किसी बीमार से उसकी दवा,
युवा से उसकी उम्मीद,
औरत से उसका सम्मान।
सच की कलम अब बिकी हुई लगती है, और ईमान की बोली हर रोज लगती है।
आगे क्या लिखूं अब तुमसे सवाल है— क्या तुम भी इस सन्नाटे का हिस्सा बनोगे, या आवाज बनकर गूंज उठोगे?
अगर आज खामोश रहे, तो कल शायद तुम्हारी कहानी भी खबर ना बन पाएगी।
तुम जागे हो, या तुम भी सो गए? या उस भीड़ का हिस्सा बन गए, जो सच को देखकर भी आंखें फेर लेती है, और झूठ को सलामी देकर आगे बढ़ जाती है।
याद रखना— सन्नाटा हमेशा टूटता है, पर तब जब कोई एक आवाज उठाता है।
तारीखें उन्हीं को लिखती हैं, जो सच के लिए खड़े होते हैं।
तो बोलो… तुम्हारा नाम किस पन्ने पर लिखा जाएगा? खामोशों की भीड़ में? या उन चंद आवाजों में, जिन्होंने अंधेरे में भी दिया जलाया? फैसला तुम्हारे हाथ में है… जागना है… या सोते रहना है।
~Rishav Raunak
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